नारी आन्दोलन ने अपने इतिहास के दौरान कौन-कौन से मुख्य मुद्दे उठाए हैं?
उत्तर-भारत में 16वीं और 17वीं शताब्दी में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार के प्रयास किए गए। भारत में महिला आन्दोलन का प्रारम्भ सामाजिक सुधार आन्दोलन के एक हिस्से से शुरू हुआ।
राजा राममोहन राय ने सामाजिक, धार्मिक दशाओं तथा स्त्रियों की दुरावस्था में सुधार के लिए बंगाल में प्रयास किए। उन्होंने ‘सती प्रथा’ के विरुद्ध अभियान चलाया।
ज्योतिबा फुले एक सामाजिक बहिष्कृत जाति के थे और उन्होंने जातिगत तथा लैंगिक दोनों ही विषमताओं पर प्रहार किया। उन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना की। सर सैय्यद अहमद खान ने मुस्लिम समुदाय के कल्याण हेतु कदम उठाए। वे लड़कियों की शिक्षा के प्रेरक थे।
ताराबाई शिंदे ने ‘स्त्री-पुरुष तुलना’ नामक किताब लिखी। प्रकार के कानून बनाए
स्वतन्त्रता के पश्चात् महिलाओं के उत्थान से सम्बन्धित कई गए ताकि उन्हें शिक्षा, मातृत्व लाभ, जायदाद सम्बन्धी अधिकार दिए जाएँ।
समय-समय पर महिलाओं के शोषण, बलात्कार, छेड़छाड़, वैवाहिक हिंसा, प्रतिकूल लिंग अनुपात, दहेज इत्यादि कई मद्दे हैं, जिन्हें आधुनिक समय में उठाया जा रहा है ताकि महिलाओं को इन सबसे मुक्ति दिलाई जा सके।