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पाण्ड्य सरदार को दी जाने वाली वस्तुओं तुलना दंगुन गाँव की वस्तुओं से कीजिए।

Posted on August 10, 2021August 10, 2021 by Ipl20news

पाण्ड्य राज्य दक्षिण भारत का महत्वपूर्ण राज्य था। प्राचीन संगम ग्रन्थों में हमें पाण्ड्य राज्य के राजाओं तथा सरदारों की जानकारी मिलती है, कई सरदार तथा राजा लंबी दूरी के व्यापार द्वारा राजस्व जुटाते थे।

Read – अशोक के अभिलेखों में मौर्य-प्रशासन के प्रमुख तत्व कौन -कौन से है ?

पाण्ड्य सरदार को दी जाने वाली वस्तुओं तुलना दंगुन गाँव की वस्तुओं

पाण्ड्य सरदारों का विवरण तमिल महाकाव्य शिलपादिकारम में मिलता है। इस ग्रन्थ में सरदारों को जनता द्वारा उपहार देने का विवरण दिया हुआ है।

इस विवरण का एक अंश निम्न प्रकार है”जब सरदार वन की यात्रा पर थे, तो लोग नाचते-गाते हुए पहाड़ों से उतरे, ठीक उसी तरह जैसे पराजित लोग विजयी का आदर करते हैं। वे अपने साथ उपहार लाए, जिनमें हाथी दांत, सुगन्धित लकड़ी, हिनान के बाल से बने चँवर, मधु, चन्दन, गेरू, हल्दी, इलायची, मिर्च, नारियल, आम, जड़ी-बूटी, फल, प्याज, गन्ना, फूल, सुपारी केला, बाघों के बच्चे, शेर, हाथी, बन्दर, भालू, हिरन, कस्तूरी मृग, लोमड़ी, जंगली मुर्गा, बोलने वाले तोते आदि लाए।” जहाँ दंगुन गाँव के लोगों द्वारा दौर पर गये अधिकारियों को देने वाले उपहार का संबंध है, उसका विवरण चन्द्रगुप्त

विक्रमादित्य की पुत्री प्रभावती के एक अभिलेख में दिया। हुआ है। इस अभिलेख में लिखा हुआ है कि प्रभावती दंगुन गाँव के वासियों को आदेश देती है। आपको ज्ञात हो कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादर्शी तिथि को धार्मिक पुण्य प्राप्ति ग्रन्थ में सरदारों को जनता द्वारा उपहार देने का विवरण दिया करते थे।

हुआ है। इस विवरण का एक अंश निम्न प्रकार है“जब सरदार वन की यात्रा पर थे, तो लोग नाचते-गाते हुए पहाड़ों से उतरे, ठीक उसी तरह जैसे पराजित लोग विजयी का आदर करते हैं। वे अपने साथ उपहार लाए, जिनमें हाथी दांत, सुगन्धित लकड़ी, हिनान के बाल से बने चँवर, मधु, चन्दन, गेरू, हल्दी, इलायची, मिर्च, नारियल, आम, जड़ी-बूटी, फल, प्याज, गन्ना, फूल, सुपारी केला, बाघों के बच्चे, शेर, हाथी, बन्दर, भालू, हिरन, कस्तूरी मृग, लोमड़ी, जंगली मुर्गा,

बोलने वाले तोते आदि लाए।” जहाँ दंगुन गाँव के लोगों द्वारा दौर पर गये अधिकारियों को देने वाले उपहार का संबंध है, उसका विवरण चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की पुत्री प्रभावती के एक अभिलेख में दिया। हुआ है। इस अभिलेख में लिखा हुआ है कि प्रभावती दंगुन गाँव के वासियों को आदेश देती है। आपको ज्ञात हो कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादर्शी तिथि को धार्मिक पुण्य प्राप्ति के लिए इस ग्राम को जल अर्पण के साथ आचार्य चनाल स्वामी को दान किया गया है। आपको इसके सभी आदेशों का पालन करना चाहिए…..दौरे पर आने वाले शासकीय अधिकारियों को यह गांव आसन में प्रयुक्त होने वाले जानवरों की खाल और कोयला देने के दायित्व हैं।

साथ ही वे मदिरा खरीदने और नमक हेतु खुदाई करने के राजसी अधिकारों को कार्यान्वित किये जाने से मुक्त हैं। इस गाँव को खनिज पदार्थ और खादिर वृक्ष के उत्पाद देने से भी छूट है। फूल और दूध देने से भी छूट है। इस गाँव का दान इसके भीतर की सम्पत्ति और बड़े छोटे सभी करों सहित किया गया है। उपर्युक्त अभिलेख के विवरण से स्पष्ट है कि दंगुन गाँव के लोग घास, जानवरों की खाल कोयला, मदिरा, नमक, खनिज पदार्थ, खादिर वृक्ष के उत्पाद, फूल, दूध उपहार में दिया !


अब प्रश्न यह है कि पाण्ड्य राज्य के सरदारों को दिये जाने वाले उपहारों और दंगुन गाँव के उपहारों में क्या समानता एवं असमानता है। इसमें एक समानता यह है कि दोनों अपनेअपने सरदारों को अपने-अपने समय पर अनेक वस्तुएँ भेंट में दिया करते थे।

किन्तु दोनों की भेंटों में असमानता यह है कि पाण्ड्य सरदार को मिलने वाली वस्तुओं की सूची दंगुन गांव के लोगों द्वारा दी जाने वाली वस्तुओं की सूची से बहुत बड़ी है। प्रभावती गुप्त के अभिलेखों से पता चलता है कि वाकाटक अधिकार क्षेत्र में राज्य को मदिरा खरीदने व नमक हेतु खुदाई करने के राजसी अधिकारों को लागू करवाने का भी अधिकार था किन्तु पाण्ड्य अधिकार क्षेत्र में हमें ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता।

दूसरी असमानता यह है कि पाण्ड्य राज्य के लोगों ने नाचते गाते हुए ठीक उसी प्रकार सेन गुतूवन का स्वागत किया, जैसे पराजित लोग विजयी लोगों का करते हैं। संभवत पाण्ड्य राज्य के लोग स्वेच्छापूर्वक अधिक से अधिक वस्तुएँ अपने शासक

को भेंट के रूप में देते थे किन्तु ऐसा उल्लेख प्रभावती के अभिलेख में नहीं मिलता।

(1) अभिलेखों में अक्षरों को हल्के ढंग से उत्कीर्ण किया जाता है, जिनको पढ़ पाना कठिन होता है।

(2) अभिलेख नष्ट भी हो सकते है, जिनसे अक्षर लुप्त हो जाते हैं।

(3) अभिलेखशास्त्रियों के लिए सभी भाषाओं के अभिलेखों को पढ़ना संभव नहीं हो सका है। जैसे अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गये थे, कुछ अभिलेख प्राकृत भाषा में हैं। पश्चिमोत्तर में मिले अभिलेख अरामाइक और यूनानी भाषा में है, कुछ खरोष्ठी लिपि में है।

(4) अभिलेखों में लिखे वाक्यों के अर्थ को समझने में कठिनाई होती है।

(5) अभिलेखों के शब्दों के वास्तविक अर्थ के विषय में पूर्ण रूप से ज्ञान हो पाना सदैव सरल नहीं होता क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशिष्ट स्थान या समय से सम्बन्धित होते हैं। (6) कई हजार अभिलेख प्राप्त हुए हैं किन्तु सभी के अर्थ नहीं निकाले जा सके हैं। उनका अनुवाद भी नहीं हुआ है। (7) अभिलेख सदैव उन्हीं व्यक्तियों के विचार व्यक्त करते हैं जो उनको बनवाते हैं।

(8) एक महत्वपूर्ण समस्या यह है कि जिसे हम आज राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मानते हैं उनको अभिलेखों में अंकित किया ही नहीं गया हो। उदाहरण के लिए

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