वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के वस्तु विनिमय के लिए प्रयुक्त कुछ तरीकों पर चर्चा कीजिए। उनके क्या। क्या लाभ और समस्याएँ हैं? उत्तर- वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के विनिमय के लिए दो तरीके अपनाए जाते थे-एक वस्तु विनिमय तथा दूसरा मुद्रा विनिमय।
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वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के वस्तु विनिमय क्या क्या है
हड़प्पावासियों के भारत के अन्य भागों तथा विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध थे। भारत विभिन्न प्रकार की धातुओं का आयात दक्षिणी पूर्वी भारत, कश्मीर, कर्नाटक और नीलगिरि से करता था और सिन्धु घाटी में प्राप्त माल का निर्यात वह इन क्षेत्रों में करता था। उस समय विनिमय का मुख्य तरीका वस्तु विनिमय था। मेसोपोटामिया तथा मिस्र की सभ्यता में सिन्धु सभ्यता की वस्तुओं की भरमार है। इससे सिद्ध होता है कि यहाँ से माल वहाँ निर्यात किया जाता था और
वहाँ से सोना, चाँदी, बहुमूल्य लकड़ी आदि सामान मँगाया जाता था। ओमान (मेसोपोटामिया) में मिले एक हड़प्पाई मर्तबान के विषय में लिखा है कि “यह सम्भव है. कि हड़प्पा सभ्यता के लोग इस मर्तबान में रखे सामान का ओमानी ताँबे से विनिमय करते थे। इसी प्रकार अन्य सामान को भी वस्तु विनिमय द्वारा प्राप्त करते थे।
दक्षिण भारत, राजस्थान, गुजरात, मेसोपोटामिया तथा मिस्र सभ्यता में मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त सिक्के मिले हैं। इससे सिद्ध होता है कि सिक्कों से भी विनिमय होता था। उस समय सांकेतिक सिक्कों का प्रचलन था अथवा नहीं इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है, इतना अवश्य है कि सोने, चाँदी के सिक्कों से विनिमय अवश्य होता होगा, अत: अनुमान लगाया जाता है कि किसी-न-किसी रूप में मुद्रा विनिमय भी होता था।
वस्तु विनिमय के लाभ
(1) भारत के गाँवों में वस्तु विनिमय प्रणाली आज भी प्रचलन में है, इस प्रणाली से पारस्परिक सहयोग में वृद्धि होती है। पारस्परिक सहयोग के बिना वस्तु विनिमय सम्भव नहीं हो सकता था। वस्तु विनिमय प्रणाली में विकेन्द्रीकरण का भय नहीं था। धनी समाज द्वारा गरीब समाज का शोषण नहीं होता था। इससे समाज में शान्ति तथा संतुष्टि रहती थी।
(2) मुद्रा के आविष्कार से पूर्व सिन्धुवासी वस्तु विनिमय का उपयोग करते थे। विदेशी व्यापार में तो वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रभुत्व था। यह प्रणाली अत्यन्त सरल थी और इसको सभी वर्ग के व्यक्ति आसानी से समझ सकते थे।
वस्तु विनिमय की समस्याएँ- इस प्रणाली में दोहरे संयोग की समस्या थी। यह प्रणाली तभी सम्भव हो सकती थी जब दोनों पक्ष एक-दूसरे की वस्तुओं को लेने तथा देने को तैयार हों। वस्तु के विभाजन में कठिनाई होती थी जिसके कारण वस्तु विनिमय करना कठिन हो जाता था।
सर्वमान्य मूल्य का अभाव होता था। कौन-सी वस्तु कितनी और किस वस्तु के बदले दी जायेगी, इसके निर्धारण में कठिनाई होती थी। धन संचय से साधनों का अभाव था।
मुद्रा विनिमय- सिन्धु घाटी में बहुत बड़ी तादाद में धातुओं के भी सिक्के मिले हैं। इससे विनिमय करने से दोहरे संयोग की कठिनाई दूर हो गई, माप सुलभ हो गया, क्रय शक्ति संचय सम्भव हो गया और वस्तु के विभाजन की कठिनाई दूर हो गई किन्तु इनमें सबसे बड़ी समस्या यह थी कि इनकी इतनी मात्रा नहीं थी कि उस समय मानव इनके विनिमय द्वारा अपनी सभी आवश्यकताएँ पूरी कर सके। अत: उसको वस्तु विनिमय पर ही निर्भर रहना पड़ता था।
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