शीत युद्ध की शिथिलता के कारण
1947 से 1987 तक चले शीत-युद्ध में शिथिलता आने प्रमुख कारणों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।
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उदारवादी विचारधाराएँ– द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की विदेश नीति अत्यधिक कट्टर थी। बाद में स्टालिन तथा टुमैन के उत्तराधिकारियों की समझ में यह बात घर कर गई कि कट्टरपंथी विचारधारा से दोनों को लाभ के स्थान पर हानि ही उठानी पड़ेगी। अत: उन्होंने अपनी कट्टरपंथी नीतियों का त्याग करके उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया।
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व- सोवियत संघ तथा संयुक्त राष्ट्र अमेरिकी नेताओं ने सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को स्वीकार किया। गोर्वाच्योव तथा बुश ने “जिओ तथा जीने दो’ के सिद्धान्त को उचित माना जिससे शीत युद्ध को हटाने में मदद मिली। 3. यूरोप में परिवर्तन की लहर- जर्मनी की बर्लिन दीवार का टूटना, पोलैण्ड में राजनीतिक कट्टरता की कमी तथा चेकोस्लोवाकिया एवं युगोस्लाविया में बन्धुत्व की भावना का विकास इत्यादि।
सोवियत संघ की आर्थिक कमजोरी– 1980 के पश्चात् सोवियत संघ भारी आर्थिक तंगी से गुजरने लगा। अन्तरिक्ष अनुसंधान की प्रतिस्पर्धा, हथियारों के निर्माण पर विपुल धनराशि खर्च करने में सोवियत अर्थव्यवस्था चरमरा गई।
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